UPSC 2024: UPSC क्या है पूरी जानकारी हिंदी में? संघ लोक सेवा आयोग के कार्य, संरचना, संवैधानिक प्रावधान, और पृष्ठभूमि

UPSC in hindi: यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) एक संवैधानिक निकाय हैं जो देश में ग्रुप ए (Group-A) और ग्रुप बी (Group-B) की परीक्षा का आयोजन, संचालन और परीक्षा का परिणाम जारी करने का कार्य करता हैं। इसमें आईएएस और आईपीएस जैसे बड़े पदों पर नियुक्तियों के लिए परीक्षा ली जाती हैं। यूपीएससी सिविल सर्विसेज एक्साम्स के अलावा भी कई तरह की अनेक विभागों की परीक्षाओं का आयोजन करती हैं।

यह देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक हैं जिसे पास करने के बाद आप जिला कलेक्टर , आईपीएस अधिकारी जैसे पदों पर जॉब ले सकते हैं। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC in hindi) द्वारा हर साल परीक्षा आयोजित की जाती हैं। इसमें देश के लाखों युवा परीक्षा में बैठते हैं और सिर्फ एक हजार तक लोगों का ही चयन होता हैं। आज हम इस आर्टिकल में यूपीएससी क्या हैं? (What is UPSC in hindi) के बारे में जानेंगे। संघ लोक सेवा आयोग के कार्य, संरचना, संवैधानिक प्रावधान, और पृष्ठभूमि क्या हैं?

UPSC क्या है पूरी जानकारी हिंदी में?

UPSC  kya hai in hindi : यूपीएससी (UPSC) का फुल फॉर्म संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) हैं। संघ लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक आयोग हैं जिसे संविधान में वर्णित प्रावधानों के अनुसार बनाया गया हैं। यह देश की अखिल भारतीय सेवाओं की परीक्षाओं को आयोजित करता हैं। इन सेवाओं में ग्रुप ए (Group-A) और ग्रुप बी (Group-B) की प्रमुख पदों की भर्तियों के लिए राष्ट्रिय स्तर पर परीक्षा यूपीएससी कंडक्ट करवाती हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315-323 तक संघ लोक सेवा आयोग के गठन, शक्तियां, सदस्यों की नियुक्ति एवं पदावधि, तथा कार्यों का प्रावधान किया गया हैं।

पृष्ठभूमि

भारत में सिविल सेवाओं की शुरुआत 1793 में कार्नवालिस कोड के आने के बाद हुयी। कार्नवालिस कोड ने भारत में प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्थाओं को अलग-अलग किया। इसीलिए लार्ड कार्नवालिस को भारत में सिविल सेवा का जनक कहा जाता हैं। इन सिविल सेवकों की भर्ती कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर की सिफारिश के आधार पर की जाती थी। प्रशासन चलाने के जिन लोगों की नियुक्तियां की जाती थी उन्हें सिविल सर्वेंट कहा जाता था।

लेकिन सिफारिश के आधार पर आने वाले सिविल सेवकों की दक्षता और कार्य करने के ढंग को देखते हुए उन्हें भारत में प्रशिक्षण की आवश्यकता को महसूस किया गया। सिफारिश पर भर्ती हुए सिविल सेवकों को प्रशिक्षण देने के लिए सन 1800 में लार्ड वेलेजली ने कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। लेकिन इन सिविल सेवकों ने यहाँ प्रशिक्षण में रूचि नहीं दिखाई और कोई भारत में प्रशिक्षण नहीं लेना चाहता था जिसके कारण इस कॉलेज को बंद कर दिया गया।

  • सन 1806 में लन्दन के हेलीबरी में ईस्ट इंडिया कॉलेज को खोला गया जहाँ इन सिविल सेवकों को प्रशिक्षण दिया जाता था।

लेकिन लन्दन के हेलीबरी से प्रशिक्षत होने के बाद भी भारत में सिविल सेवकों की दक्षता में कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिला था क्योंकि उनका प्रशिक्षण भारत के सामाजिक जीवन के अनुसार नहीं होता था। और साथ ही भ्रष्टाचार और कई अनियमितताओं के कारण फिर एक आयोग का गठन किया गया जो सिविल सेवकों में सुधार ला सके।

सन 1854 में मैकाले की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसने लोक सेवको की नियुक्ति सिफारिश के आधार पर करने की बजाय सिविल सेवा परीक्षा (प्रतियोगिता परीक्षा) के आधार पर लोक सेवकों को भर्ती करने की सिफारिश की। (1853 के चार्टर अधिनियम के तहत इस समिति का गठन किया गया था।) मैकाले समिति की इस सिफारिश को मान लिया गया और सिविल सेवा परीक्षा की शुरुआत की गई।

  • 1855 में लन्दन में सिविल सेवा परीक्षा का आरम्भ हुआ।
  • इसमें उम्मीदवार न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और अधिकतम उम्र 23 वर्ष थी।
  • 1864 में सत्येन्द्रनाथ टैगोर पहले भारतीय थे जिन्होंने सिविल सेवा परीक्षा को उत्तीर्ण किया था। आपको बता दे कि सत्येन्द्र नाथ टैगोर रविन्द्र नाथ टैगोर के भाई थे।

सन 1886 में एचिसन आयोग का गठन किया गया जिसने आयु सीमा को फिर से 23 वर्ष करने की सिफारिश की। (लार्ड डफरिन के समय इस आयोग का गठन किया गया था।) भारत में सिविल सेवा सुधार हेतु 1874 में सिविल सेवा सुधार आन्दोलन सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने चलाया था।

एचिसन आयोग ने इन्हे तीन भागों में बांटा – इम्पीरियल सर्विसेज, प्रांतीय सेवाएं, अधीनस्थ सेवाएं।

इसलिंगटन आयोग 1912 में इस आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन भारत में करवाने की सिफारिश की। यह आयोग हार्डिंग द्वितीय के समय बनाया गया था।

इसके बाद भी यूपीएससी (UPSC kya hai) में कई महत्वपूर्ण बदलाव किये गये जिन्हें इस (UPSC in hindi) ब्लॉग में जानते हैं और इससे जुड़े वर्तमान संविधान और संरचना देखते हैं। वर्तमान में यूपीएससी भारत में एक स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था के रूप में कार्य करती हैं।

  • भारत शासन अधिनियम 1919 –

इम्पीरियल सर्विसेज का दो भागों में वर्गीकरण कर दिया गया, 1. अखिल भारतीय सेवाएं और 2. केंद्रीय सेवाएं

इसी अधिनियम की धारा 96(C) में प्रावधान किया गया, कि लोक सेवा आयोग होना चाहिए।

  • 1922 में पहली बार भारत में सिविल सेवा की परीक्षा का आयोजन इलाहबाद में किया गया था।
  • 1923 में शाही आयोग/ली आयोग का गठन किया गया और इसने अपनी रिपोर्ट 27 मार्च 1924 में पेश की, जिसके आधार पर 01 अक्टूबर 1926 को लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।

लोक सेवा आयोग का गठन

  • भारत में लोक सेवा आयोग का गठन 01 अक्टूबर 1926 को किया गया था। इसके प्रथम अध्यक्ष्य रॉस बार्कर थे।
  • इसे भारत शासन अधिनियम 1919 की धारा 96(C) के आधार पर गठित किया गया था।
  • ली आयोग की सिफारिश पर भारत में लोक सेवा आयोग बनाया गया था।

संरचना :- 4+1 (एक अध्यक्ष और चार सदस्य)

  • भारत शासन अधिनियम 1935 –

देश में लोक सेवा आयोग के गठन के कुछ सालों बाद ही प्रांतीय सिविल सेवाओं के लिए पृथक संस्था की आवश्यकता को महसूस किया गया। इसके लिए भारत शासन अधिनियम 1935 के सेक्शन 264 से 268 में पृथक आयोग की व्यवस्था की गयी।

भारत शासन अधिनियम 1935, सेक्शन 264-268 के तहत, 01 अप्रैल 1937 को

  1. फेडरल सर्विस कमीशन और,
  2. प्रांतीय सर्विस कमीशन की स्थापना की गयी थी।

26 जनवरी 1950 को संविधान लागु होने के बाद लोक सेवा आयोग

भारतीय संविधान के भाग -14 में अनुच्छेद 315 के तहत देश में संघ लोक सेवा आयोग और सभी राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया हैं। इसीलिए संघ लोक सेवा आयोग और सभी राज्यों के राज्य लोकसेवा आयोग एक संवैधानिक निकाय हैं। संघ लोक सेवा आयोग के तात्कालिक अध्यक्ष एचके कृपलानी थे। आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सिविल सेवाओ के सशक्तिरण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया।

यूपीएससी (UPSC) का फुल फॉर्म संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) हैं। इसका प्रावधान आर्टिकल 308 से 323 तक भारतीय संविधान में किया  गया हैं। यह एक स्वतंत्र, स्वायत, संवैधानिक सलाहकारी निकाय हैं। यह समूह A और समूह B की केन्द्रीय भर्तियों के लिए परीक्षा का आयोजन करती हैं।

लोक सेवा आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

भारत का लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक निकाय हैं जिसका प्रावधान भारत के मूल संविधान में किया गया हैं। भारतीय संविधान के भाग-14 में अनुच्छेद – 308 से अनुच्छेद 323 तक लोक सेवा आयोग से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रावधानों का वर्णन किया गया हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद – 315 से शक्तियां प्राप्त हैं।

संविधान के भाग-14 (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) को दो भागों में बांटा गया हैं। भाग-14 का अध्याय –  01, अनुच्छेद 308 से अनुच्छेद 314 तक हैं जिसमें सेवाओं से संबंधित सेवा शर्तों का उल्लेख किया गया हैं। और अध्याय – 02 में लोक सेवा आयोग का वर्णन हैं जो अनुच्छेद:- 315 से 323 तक हैं। 

प्रमुख अनुच्छेद

अध्याय:- 01. सेवाएँ (अनुच्छेद 308-314)

अनुच्छेद: 308 –  राज्य की परिभाषा

अनुच्छेद: 309 – संघ और राज्यों के सिविल सेवकों की सेवा शर्तें

अनुच्छेद: 310 – (1) संघ और राज्यों के सिविल सेवकों की पदावधि, (2) सिविल सेवकों को हटाने की शक्ति

अनुच्छेद: 311 – (1) संघ और राज्यों के सिविल सेवकों को हटाने की प्रक्रिया, (2) सुनवाई का अधिकार सिविल सेवकों को

अनुच्छेद: 312 –  अखिल भारतीय सेवाएँ

अनुच्छेद: 313 – संक्रमणकालीन उपबंध

अनुच्छेद: 314  – अब हटा दिया गया हैं।

अध्याय:- 02. लोक सेवा आयोग (अनुच्छेद 315-323)

अनुच्छेद: 315 – लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान

अनुच्छेद: 316 – अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति, योग्यता, पदावधि, और त्याग-पत्र

अनुच्छेद: 317 – हटाने की प्रक्रिया का प्रावधान

अनुच्छेद: 318 – अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा शर्तें

अनुच्छेद: 319 – अध्यक्ष और सदस्यों की पुनः नियुक्ति के बारे में

अनुच्छेद: 320 – लोक सेवा आयोग के कार्य

अनुच्छेद: 321 – लोक सेवा आयोग के कार्यों का विस्तार करने की शक्ति

अनुच्छेद: 322 – अध्यक्ष और सदस्यों का वेतन भारत की संचित निधि पर भारित होगा

अनुच्छेद: 323 – लोक सेवा आयोग की रिपोर्ट (प्रतिवेदन)

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